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लेखनी कहानी -17-Oct-2022 सिंहनी

भाग 3 द्रोपदी 



मंदोदरी की कहानी बहुत अलग थी । जिससे प्रेम किया , उसी के साथ विवाह किया मगर जब वही आदमी एक अन्य औरत की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करने लगा तो यह कैसे सहन कर सकती है वह । अपराधी चाहे कोई भी हो , यहां तक कि वह पति ही क्यों न हो, उसे दंडित किया ही जाना चाहिए । भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यही तो उपदेश दिया था कि बिना यह देखे कि सामने कौन है ? अपना है या पराया है , दुष्टों का दमन किया ही जाना चाहिए । यही 'धर्म' है । मंदोदरी सा साहस हर किसी स्त्री में नहीं होता है । अधिकतर औरतें अपने पिता, पुत्र , भाई और अपने पति के अपराधों पर पर्दा डालने का काम करती हैं । वे ऐसा करते समय यह नहीं सोचती कि उनके इस कृत्य से एक अपराधी और भी भयानक अपराध करने के लिए प्रेरित हो रहा है । अगर आज वह छूटा तो भविष्य में वह और किसी औरत की अस्मिता के साथ फिर से खिलवाड करेगा । इस तरह उसका साहस और बढता चला जायेगा और वह व्यक्ति हिस्ट्रीशीटर बन जायेगा । अगर मंदोदरी की तरह सब औरतें सोचें और कृत्य करें तो ये अपराध कम हो जायें और यह धरती स्वर्ग बन जाये । 
अनुसूइया और सिया ने माला पहना कर मंदोदरी का अभिनंदन किया और उसके माथे पर कुंकुम तिलक लगाकर उसके कृत्य को सामाजिक मान्यता दे दी । कानून का अलग सिद्धांत हो सकता है पर समाज का तो एक ही सिद्धांत है कि अपराधी को दंड मिलना ही चाहिए । अगर अपराधी दंडित नहीं होंगे तो वे समाज में कोढ की तरह 'रिसते' ही रहेंगे । मंदोदरी ने एक मिसाल कायम की थी । अनुसूइया और सिया द्वारा दिये गये सम्मान से मंदोदरी की आंखों की चमक और बढ गई थी । 

अनुसूइया जी ने आवाज देकर द्रोपदी को बुलाया । द्रोपदी भी सिंहनी की भांति झूमती हुई आई और अपनी कहानी सुनाने लगी । 

अपनी कहानी क्या सुनाऊं 
दर्द का एक अफसाना है 
जीवन क्या है, आग का एक दरिया है 
जिसमें डूबकर पार जाना है । 

उसकी इस कवितानुमा पंक्तियों पर सभी महिलाओं ने जमकर तालियां बजाई । इससे द्रोपदी का उत्साह और भी बढ गया था । वह कहने लगी । 
मैं अपने शहर के सबसे प्रतिष्ठित विद्यालय में अध्यापिका थी । उस विद्यालय में काम करना ही बहुत बड़ा सम्मान माना जाता था । मैं भी स्वयं को धन्य समझती थी कि मैं ऐसे विद्यालय में पढाती हूं जिसमें अपने बच्चों को पढाने के लिए हर मां बाप लालायित रहते हैं । पर मुझे उस समय तक उस  विद्यालय की हकीकत पता नहीं थी । उस विद्यालय के मालिक के संबंध बड़े बड़े राजनेताओं , कलेक्टर, डी एस पी से लेकर बड़े बड़े लोगों के साथ थे । छुट्टी के दिन उस विद्यालय में बड़ी शानदार पार्टियां हुआ करती थी । मैंने उड़ती सी खबर सुनी थी कि उन पार्टियों में शराब , शबाब और कबाब का शानदार बंदोबस्त होता था । पर मैं इसे कोरी अफवाह ही मानती थी । मैंने इन पर कभी विश्वास नहीं किया । जब तक आंखों से देख नहीं लो तो विश्वास कैसे क्य सकते हैं ? 
एक दिन मुझे विद्यालय के मालिक ने अपने चैंबर में बुलाया और कहा "मैडम, आप बहुत खूबसूरत हैं । आपकी खूबसूरती कोई काम नहीं आ यही है । भगवान ने जब इतनी खूबसूरती दी है तो इससे पैसा और शोहरत दोनों कमाओ ।  यहां विद्यालय में अपनी जवानी क्यों बर्बाद कर रही हो । आप तो कोई बहुत बड़ी हीरोइन बन सकती हो । थोड़ी समझदारी से काम लो और जैसा मैं कहूं वैसा करो तो तुम पैसा और शोहरत की नई इबारत गढ सकती हो । मेरे संबंध बहुत बड़े बड़े लोगों से हैं । मैं तुम्हें एक मॉडल या हीरोइन बनवा दूंगा । बोलो क्या कहती हो" ? ऐसा कहकर उसने मुझे देखकर अपनी बांयी आंख दबा दी और एक हाथ मेरे सीने पर रखकर दबा दिया । उसके इस अचानक  व्यवहार से मैं सकते में आ गई और पीछे हटते हुए बोली 
"ये क्या बदतमीजी है, सर ? अपनी सीमा में रहो वरना शोर मचा दूंगी" 
मेरी इस बात पर वह बहुत जोर से हंसा । मैं एकदम से डर गई और बिना कुछ बोले वहां से जाने लगी । इतने में वह बोला 
"अरे जा कहां रही हो मैडम , मैंने एक वीडियो भेजा है अभी अभी । उसे तो देख लो पहले, फिर चली जाना" । और वह बेशर्मी से हंसने लगा । 
मैं चौंकी । क्या है उस वीडियो में ? कौतुहल और अज्ञात भय से मैंने वह वीडियो देखना शुरू किया । जैसे जैसे मैं वीडियो देखती गई, मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसकती चली गई । वह वीडियो मुझ पर ही बनाया गया था । उसमें मैं पूर्ण रूपेण नग्न दिख रही थी । वह मेरा 'पोर्न' वीडियो था ।  ना जाने कब बनाया था उसने वह वीडियो ? हां, मुझे याद आया । कल किसी बहाने से उसने मुझे इसी चैंबर में बुलाया था और कोल्ड ड्रिंक भी पिलाई थी । कोल्ड ड्रिंक पीने के बाद मैं बेहोश हो गई थी । उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं कि मेरे साथ क्या हुआ था ?  वह वीडियो देखने के बाद मेरी समझ में सब कुछ आ गया था । 
मेरे चेहरे का उड़ता रंग देखकरवह बोला "तो कल की पार्टी में आ जाओ और मेरे कुछ खास मेहमानों को खुश कर जाओ" उसने जहरीली मुस्कान के साथ कहा । 
मैं समझ गई कि वह मुझसे क्या चाहता था ? मैं ब्लैकमेल का शिकार हो रही थी मगर मैंने दृढता के साथ मना कर दिया और पैर पटकते हुए वहां से चली आई । 
थोड़ी देर बाद मेरे पति का फोन आया "द्रोपदी, क्या है यह सब ? तुम तो सचमुच की द्रोपदी से भी दो कदम आगे निकल गई हो । महाभारत की द्रोपदी को तो दुर्योधन निर्वस्त्र कर नहीं पाया मगर तुम तो स्वयं निर्वस्त्र होकर वीडियो बनवा रही हो । तुम इतनी गिर जाओगी मैंने सोचा नहीं था" । और उन्होंने गुस्से से फोन काट दिया । 
मैं समझ गई कि यह करतूत किसकी है । पर मेरे पास क्या विकल्प थे ? मैं चुपचाप घर आ गई । घर पर पतिदेव बाहर ही मिल गये । उन्होंने मुझे अंदर नहीं घुसने दिया । मैं बहुत रोई गिड़गिड़ाई मगर उन पर कोई असर नहीं हुआ । वे पत्थर बने रहे । मेरी एक नहीं सुनी और दरवाजा बंद कर अंदर चले गये । मैं घर के बाहर ही पड़ी रही । मुझे कुछ भी नहीं सूझ रहा था कि मैं करूं तो क्या करूं ? 
अचानक मोबाइल बज उठा । वही राक्षस था । बोला " अभी तो यह वीडियो सिर्फ तुम्हारे पति तक पहुंचा है । कल यह पूरे शहर के मोबाइल में होगा । अभी तो तुम सिर्फ बेघर हुई हो कल तुम आत्महत्या करने पर विवश हो जाओगी । इसलिए मेरा कहना मानो और कल तैयार होकर पार्टी के लिए आ जाओ । मैं तुम्हें एक मशहूर हीरोइन बनवा दूंगा" । 

मेरे दिमाग का दही जमा हुआ था । मैं कुछ सोच नहीं पा रही थी । बार बार एक ही खयाल आ रहा था कि कल जब यह वीडियो सब लोग देखेंगे तो क्या सोचेंगे ? मैं कैसे सामना करूंगी सबका ?  ऐसे जीवन से तो मौत ही अच्छी है । पति मेरा विश्वास नहीं करता । घर आंगन सब छूट गया । इज्जत तार तार हो गई । तो अब जीकर क्या करना है ? ऐसा सोचकर मैं रेल से कटने के लिए चल पड़ी । 
मैं रेल की पटरियों के बीचोंबीच चल रही थी । सामने से एक ट्रेन आ रही थी । फासला बहुत ज्यादा नहीं था । इतने में एक लड़की बगल में से कूदकर ठीक मेरे सामने आ गई । मैं अचकचा गई और अपने बारे में सब कुछ  भूल गई । मैंने आव देखा ना ताव और पूरी ताकत से उसे बांहों में भरकर पटरियों से बाहर कूद पड़ी । भगवान मेहरबान था , हम दोनों ही बच गई । उसकी भी वही स्थिति थी जो मेरी थी । तब हम दोनों ने मरने का विचार त्याग दिया और दुष्टों को सबक सिखाने का दृढ संकल्प ले लिया । 
तब हमने एक योजना बनाई । योजना के अनुसार मैंने अपने  विद्यालय के मालिक को फोन कर कह दिया कि मुझे उनका प्रस्ताव मंजूर है । मालिक बहुत खुश हुआ । 
दूसरे दिन योजना के अनुसार हम दोनों थोड़ा जल्दी विद्यालय चले गये । वहां पर हमने बिजली के सर्किट वगैरह देख लिये । तय समय पर मैं हॉल में आ गई । वहां पर पहले से ही कलेक्टर, डी एस पी, एक नामी वकील , एक फिल्म निर्माता और विद्यालय का मालिक बैठे हुए थे । मैं जानबूझकर पारदर्शी वस्त्र पहन कर गई थी । मैं उन पांचों के लिए पैग बनाने लगी । इतने में लाइट चली गई । मैं समझ गई कि उस युवती ने अपना काम कर दिया है अब मुझे अपना काम करना है । मैंने अपने अधोवस्त्र में छुपाकर रखी नींद की दवाई की पुड़िया निकाली और सभी पैगों में डाल दी । थोड़ी देर बाद लाइट आ गई । 
सब लोग शराब पीने लगे और मेरे साथ छेड़छाड़ करने लगे । उस समय मै अपने आपको बहुत धिक्कार रही थी लेकिन एक कहावत है न कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है  । इसलिए मैं चुपचाप सब कुछ झेलती रही और उनके बेहोश होने का इंतजारकरती रही । थोड़ी देर में वे सब बेहोश हो गये । 
मैंने उस लड़की को अंदर बुलवा लिया और उनमें से एक आदमी को घसीटकर हम लोग पड़ोस के कमरे में ले गये । वहां पर हमने उसका मुंह बंद कर दिया और उसके हाथ पांव बांध दिये । फिर मैंने अपने अधोवस्त्र में से ब्लेड का एक पैकेट निकाला और उसका गुप्तांग काटकर एक थैली में रख लिया । इस तरह हमने बारी बारी से पांचो के गुप्तांग काटकर पांच थैलियों में भर लिये । 
फिर मैंने उस लड़की को वहां से यह कहकर भगा दिया कि  अब वह भी अपने अपमान का बदला इसी प्रकार से ले ले जिससे भविष्य में फिर कोई राक्षस किसी स्त्री को छूने की हिम्मत नहीं कर सके ।
मुझे पता था कि एस पी साहिबा एक महिला हैं और नेक हैं । इसलिए मैं एस पी साहब के बंगले पर आ गई । उन्हें सारी कहानी सुनाई और बताया कि वे पांचों दरिन्दे वहां पर पड़े हैं । एस पी साहिबा "दुर्गा" साक्षात दुर्गा की अवतार लगती थीं । उनसे अपराधी थर थर कांपते थे । मेरी बातें सुनकर उन्होंने मुझे ऐसे देखा जैसे मैं कोई अजूबा हूं । उन्हें मेरी बातों पर विश्वास ही नहीं हुआ।  जब मैंने पांच थैलियों में बंद पांच कटे हुए लिंग उन्हें दिखाये तब जाकर उन्हें मेरी बात पर यकीन हुआ । मैं चाहती थी के वे दुष्ट मरें नहीं बल्कि जिंदा रहें जिससे उनकी सार्वजनिक बदनामी हो और उनकी बाकी की सारी जिंदगी घुट घुट कर कटे । जनता उन पर थूके । 

हुआ भी यही । मेरे बयानों को मीडिया ने भरपूर तवज्जो दी और सारी दुनिया उन पर थू थू करने लगी । मुझे न्यायालय ने यह कहते हुए कि काम तो बहुत बहादुरी का किया है मगर कानून अपने हाथ में लेकर गलती की है ।  इसलिए मुझे 2 साल की सजा सुनाई गई । अगले हफ्ते ही मेरी सजा खत्म हो रही है । यही बात सोच सोचकर मैं परेशान हूं कि मैं जेल से बाहर निकल कर कहां जाऊंगी ? बाहर कौन है मेरा ? यहां पर तो मैं पूरी तरह सुरक्षित थी मगर बाहर तो हर जगह दरिन्दे बैठे हैं । अब क्या होगा मेरा ? और वह जोर जोर से सुबकने लगी । 
सिया और अनुसूइया जी ने आगे बढकर द्रोपदी को गले लगा लिया और दोनों सांत्वना देने लगी । सिया ने कहा "आप मेरे साथ रहना । मैं अकेली रहती हूं । अब आगे से हम दोनों साथ साथ रहेंगी" । 
इतना सुनते ही द्रोपदी खुश हो गई । उसका मुख सिंहनी की भांति गर्व से खिल उठा । सिया ने दोनों हाथ ऊंचे कर नारा लगवाया 
"आज की नारी कैसी हो"
सबने जोर से जवाब दिया 
"सिंहनी द्रोपदी जैसी हो" 
पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा 

श्री हरि 
19.10.22 

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9 Comments

Shnaya

21-Oct-2022 08:24 PM

बहुत खूब

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Supriya Pathak

20-Oct-2022 01:01 AM

Bahut khoob 🙏🌺

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Hari Shanker Goyal "Hari"

20-Oct-2022 03:02 AM

आभार मैम

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Bahut khoob 🙏🌺

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Hari Shanker Goyal "Hari"

20-Oct-2022 03:02 AM

आभार मैम

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